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    श्रुते प्र्यवदोतत्वं बहुशो दृष्टकर्मता।
    दात्त्यं शौचप्रिति ज्ञेयं वैद्ये गुणचतुष्टयम्।।6।।

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    श्रुते प्र्यवदोतत्वं बहुशो दृष्टकर्मता।
    दात्त्यं शौचप्रिति ज्ञेयं वैद्ये गुणचतुष्टयम्।।6।।

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    वरमात्माहुतोज्ञेन न चिकित्सा प्रवर्तिता।।15।।
    पाणिचाराद्यथाचत्तुरज्ञानाभ्दीतभीतवत्।
    नौर्मारुतवशेवाज्ञो भिषक् चरति कर्मसु।।16।।

हमारे बारे में

योग एवं प्राकृतिक चिकित्षा परिषद् उत्‍तराखण्‍ड आयुर्वेदिक, यूनानी, तिब्‍बी एवं सिद्धा पद्धतियों के प्रचार-प्रसार के साथ भारत की प्राचीन चिकित्‍सा पद्धतियों के विकास के लिए भी कटिबद्ध है। योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है। जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। योग के माध्यम से शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया जा सकता है। तीनों के स्वस्थ रहने से आप स्‍वयं को स्वस्थ महसूस करते हैं। योग के जरिए न सिर्फ बीमारियों का निदान किया जाता है, बल्कि इसे अपनाकर कई शारीरिक और मानसिक तकलीफों को भी दूर किया जा सकता है। योग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर जीवन में नव-ऊर्जा का संचार करता है। योगा शरीर को शक्तिशाली एवं लचीला बनाए रखता है साथ ही तनाव से भी छुटकारा दिलाता है जो रोजमर्रा की जि़न्दगी के लिए आवश्यक है। योग आसन और मुद्राएं तन और मन दोनों को क्रियाशील बनाए रखती हैं। योग एवं प्राकृतिक चिकित्षा परिषद् उत्‍तराखण्‍ड आयुर्वेद, यूनानी, तिब्‍बी एवं सिद्धा पद्धति के क्षेत्र में कार्य करते हुए उत्‍तराखण्‍ड शासन एवं भारत सरकार द्वारा समय-समय पर प्राप्‍त निर्देशों के अनुरूप में कार्य कर रही है।

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